फिर खड़ी हुई अंगड़ाई लेकर
शाखों पर बहार आ गई।
रूप का लावण्य
यूं बिखर गया धरती पर
सितारों में भी चमक आ गई।
झुकी नजरों से देखा
यूं बिखरे सितारों को
फूलों को भी हंसी आ गई।
सांझ के धुधलके
तेरी यादों में घुल जाएं।
बलखाती सी देख देह तुम्हारी
शिराओं में भी रवानगी आ गई।
फिर खड़ी हुई अंगड़ाई लेकर
शाखों पर बहार आ गई।
-कुं. संजय सिंह जादौन (साहिल)
शाखों पर बहार आ गई।
रूप का लावण्य
यूं बिखर गया धरती पर
सितारों में भी चमक आ गई।
झुकी नजरों से देखा
यूं बिखरे सितारों को
फूलों को भी हंसी आ गई।
सांझ के धुधलके
तेरी यादों में घुल जाएं।
बलखाती सी देख देह तुम्हारी
शिराओं में भी रवानगी आ गई।
फिर खड़ी हुई अंगड़ाई लेकर
शाखों पर बहार आ गई।
-कुं. संजय सिंह जादौन (साहिल)